प्रतीक्षा
स्वप्न से रहे नैन निरुखे रीते के रीते
करती रही प्रतीक्षा दिन पर दिन बीते
सदियों से टूटी माटी मैं मिली हसरतें सारी
अत्याचारों को सह सह कर भी न कभी मैं हारी
सत्य हारता रहा झूँठ के पुञ्ज लगे जीते
करती रही प्रतीक्षा दिन पर दिन बीते
कलियुग की मैं सबरी बन कर राह सजाती जाती
आएंगे मेरे राम पंथ में चुन चुन कुसुम बिछाती
क्लेश भरे जीवन में दिन दिन परे सुभीते
करती रही प्रतीक्षा दिन पर दिन बीते
मन का दृढ़ विश्वास डिगा न मेरा कभी किसी से
प्रेम भक्ति की कठिन परीक्षा मिलता इष्ट इसी से
मेरा यह अनुराग मिटा न विरुध बलीते
करती रही प्रतीक्षा दिन पर दिन बीते
जन्मभूमि में राम तुम्हारी दर्शन को व्याकुल हूँ
अब कुछ आस बँधी है माँ की ममता सी आकुल हूँ
वआएंगे प्रभु राम साथ में जनक नन्दनी सीते
करती रही प्रतीक्षा दिन पर दिन बीते
✍️सतीश शर्मा