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16 Nov 2024 · 1 min read

प्रतीक्षा

गीतिका
~~~
प्रतीक्षा धूप की करता रहा मन है।
करें क्या छा गया लेकिन सघन घन है।

दिशाएं भर गयी शीतल हवाओं से।
बहुत धूमिल हुआ हर ओर आंगन है।

बता दो अब करें क्या बात मौसम की।
प्रदूषण से हुआ नाराज सावन है।

धुआं है धुंध है हर ओर फैले जब।
बढ़ी हर व्यक्ति की चुपचाप धड़कन है।

जहां देखो हुआ विस्तार नगरों का।
बिना वृक्षों के नीरस हो गया वन है।

सभी आजाद हैं करने लगे मन की।
इसी कारण हुई कुदरत से अनबन है।

जरूरी है करें सम्मान वसुधा का।
सभी को छोड़ना हर स्वार्थ साधन है।
~~~
-सुरेन्द्रपाल वैद्य

1 Like · 1 Comment · 8 Views
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