प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
प्रतीक्षा है किसी और की
मेरा तो कोंई और।
नहीं ठिकाना जीवन का
कहां मिलेगा ठौर।।
प्रतिक्षा है मुझे मौत की
वहीं मिलेगा ठौर।
कटु वचन, अटल सत्य है
शब्द कीजिए गौर।।
अंत समय काम न आवै
कोंई न देवें साथ।
मुझे प्रतिक्षा है नाथ की
बंदी छुड़ाए राम।।
पंच तत्व का यह देह है
अंत विलीन हो जात।
प्रतीक्षा घड़ी समाप्त हुई
यमदेव लिए हैं जाते।।
स्वरचित रचना मौलिक
डॉ विजय कुमार कन्नौजे