प्रतीक्षा
प्रतीक्षा
“बेटा, मैंने तुम्हारे सभी कपड़े और जरूरत की चीजें बड़ी वाली अटैची में रख दी है। जैसा तुमने कहा था, ठीक वैसे ही मिठाई के सभी पैकेट अलग से एक थैला में रख दिया है ?” शादी के बाद दूसरी बार घर आई नेहा को ससुराल के लिए विदा करते समय उसकी मां बोली।
“और उन पांच बच्चों के गिफ्ट्स ?” नेहा ने पूछा।
“रख दिया है वह भी मैंने मिठाइयों के पैकेट के साथ, अच्छे से पैक करके।” मां बोली।
“ससुरालियों के लिए गिफ्ट्स और मिठाई तक तो ठीक है, पर ये मुहल्ले के बच्चों के लिए गिफ्ट, फिजूलखर्ची नहीं है दीदी ?” नेहा से उसके भाई ने पूछा।
“भैया, ये फिजूलखर्ची नहीं, हमारा प्यार है बच्चों के प्रति। आपको नहीं पता ये बच्चे मुझसे कितना प्यार करते हैं। टीचर आंटी जो हूं मैं उनकी। प्रतिदिन शाम को वे बच्चे मेरा बहुत ही बेसब्री से इंतजार करते हैं। यही कारण है कि मैं स्कूल की थकावट भूल कर भी उन्हें प्रतिदिन शाम को एक घंटा पढ़ाती हूं। पिछली बार जब मैं मायके से ससुराल लौटी, तब मेरी सासु मां ने बताया था कि वे बच्चे पलक-पांवड़े बिछाकर सुबह से ही प्रतीक्षा कर रहे थे। तभी मैंने ठान लिया था कि अब से ये भी मेरे फैमिली मेंबर्स हैं और इनके लिए भी मुझे कुछ खास उपहार लेकर आना है।” नेहा बोली।
– डॉ. प्रदीप कुमार शर्मा
रायपुर, छत्तीसगढ़