प्रतियोगिता के लिये
गीत
जाने क्यों मैं उस छलिये के छल को न पहचान सकी.
लाखों दंत कथाऐं जिसकी उसको मैं न जान सकी.
भोली सूरत वाला कान्हा मन के बंधन खोल गया
जाते जाते मुँख पर वो बातें ज्ञान की बोल गया..
राधे राधे जपता था जो वो मन का निष्ठुर निकला
मिलन सदा करने वाला वो बिछुडन को आतुर निकला.
उसके मन अंबर में प्रेम की चादर मैं न तान सकी…..
२.निर्गुण भक्ति की राह दिखा, कैसे ज्ञान से बाँध गया
मेरे नैना विचलित करके, अपने अश्रु साध गया..
मुरली की तानों वाला, वो शब्दों का भंड़ार लगा.
वृंदावन की सब गोपिन को उसका अक्षर वार लगा.
ज्ञानी कान्हा की वो बातें मन से न मैं मान सकी.
लाखों दंत कथाऐं जिसकी उसको न मैं जान सकी..जाने क्यों …..
कहता है मन पथ रज बनकर चरण कमल वो छू आऊँ.
रख दे मुरली अधरों पे वो विरह रागिनी मैं गाऊ.
जतन करे, कितने भी कान्हा याद हमारी आयेगी.
मथुरा की उन गलियों में, ये राधा न मिल पायेगी..
छल बल से मैं रोकू उसको, इतना न बस ठान सकी.
लाखों दंत कथाये जिसकी उसको न मैं जान सकी..
मनीषा जोशी..