प्रतिबद्ध
“प्रतिबद्ध”
-राजा सिंह
सीता छोटी बच्ची को गोद में चिपकाये और एक हाथ से मुन्ना को अपने से सटायें, अंदर दरवाजे के पास खड़ी चिंतित, विभ्रांत रघु की राह तक रही थी.बहुत देर हो गयी थी उसे गए हुए.वह साहूकार के पास गया था, पुराना हिसाब चुकता करने और नया यदि कुछ बचा रह गया हो लेने.जब से वह व्याह कर आई है, वह देख रही है पैसे की जरुरत होने पर खेती रेहन रखी जाती है,यह सोचकर कि जब पैसे आयेंगे तब ब्याज सहित पैसे का भुगतान करके खेती वापस ले ली जायेगी.परन्तु कभी खेती से इतने पैसे जुटे नहीं कि रेहन रखे खेत छूट सके.सदैव एक आध बीघा बेचकर ही कर्ज ब्याज सहित चुकता किया गया है.वह अच्छी तरह जानती है कि पांच बीघा खेती सिमिट कर अब दो बीघा ही रह गयी होगी.कैसे होगा परिवार का भरण पोषण? परिवार बढ़ता जा रहा है और आमदनी घटती जा रही है.
दोनों बच्चे नींद में आ गए थे.वह उन्हें लेकर सुलाने चली गयी. उनमे कई दिनों से बोलचाल नहीं थी. उसने सीधे सीधे रघु से कहा था कि वे दो से अधिक बच्चों का बोझ बरदास्त नहीं कर सकते. उसने नसबंदी करवाने को कहा था..वह बिगड़ गया था.वह किसी भी हालत में न अपनी न सीता की नसबंदी करवाने को राजी था.वह परिवार नियोजन के कोई अन्य साधन अपनाने को राजी नहीं था.देखा ..जायेगा…एक दुसरे की पिछली जिंदगी की सारी शिकायतें खुल कर सामने आ गयी थी.वह सीता के विषय में कुछ नहीं जानता था परन्तु मनगढ़ंत आरोप लगाने में वह पीछे नहीं रहा,जबकि सीता उसे अपने सामने किये गये कार्यकलापों से जलील करने का कोई मौका नहीं चूक रही थी..आरोप प्रत्यारोप का सिलसिला काफी समय चला जिसकी परिणति हुई लड़ाई और मारपीट के रूप में.तब जाकर मामला शांत हुआ,बिना किसी समझौते के.
रात के दस बज चुके थे.उसमे एक डर भरने लगा था,सीता से तकरार का डर.उसने अपने से कहा,’वह जोरू का गुलाम नहीं है.ससुरी को कनपटिया देंगे.’ लौटते समय घुप्प अँधेरा था और तेज सांय-सांय हवा की आवाज उसे पगडण्डी पकड़ने से विरत कर रही थी.परन्तु नशे के कारण और सोबरन की पतोहू के घुघट में दिखते चाँद और गोरी कलाइयों में बजती संगीत से उसका नशा दुगना होकर, उसे स्वर्ग दर्शन की आहट महसूस करा रहा था. उसमे एक अतिरक्त उत्साह,उमंग और जवानी का जोश भर रहा था.इस समय वह किसी भी प्रकार के डर से पूरी तरह अनजान था.
भीतर से लौट कर आयी तो देखा रघु मस्ती में झूमता झामता चला आ रहा था.उसे लगा कि हो न हो वह साहूकार के यहाँ से उठकर सोबरन के यहाँ चला गया हो,जहाँ कच्ची दारू खिचती और बिकती है.
‘”दरवज्जे, पे काहे खड़ी हो?” वह चिल्लाया.
“तोहार इंतजार करित बा !” उसने धीरे से कहा.
“कौनव जरुरत ना है. हमे मेहरारू का इस तरह दरवज्जे पर खाड़ी रहेक भावत न है.”
“काहे,का हुई गा?” उसने जवाब तलब किया.
“ रंडी, जैसन लगत है!” वह चीखा. अबकी बार आवाज तेजी से गूंजी और दूर तक फ़ैल गयी.
रघु का बेहूदा, भौड़ा उदाहरण,उसे गलीज गाली सा लगा.वह सन्न रह गयी और भौचक उसे गुस्से में घूरती रह गयी.उसने अपने क्रोध को जब्त किया और बिना कुछ कहे वापस रसोई की तरफ चल दी.
‘”किवाड़ा क्या तुम्हारा बाप बंद करेगा?” रघु अपने नशे के उच्च स्तर में था.
“तुमका का हुआ? हाथन मा मेहदीं लगी है? तुम नहीं कर सकत हौ का?” उसकी आवाज में भी तीखापन घुस आया था.
“साली,! जबान लड़ाती है.मादर…बहन…..और फिर गलियों की अनवरत श्रंखला के बीच उसने सीता पर हाथ उठा दिया. उसने अपने को बचाते हुए किवाड़ा बंद किया और भाग कर रसोई में घुस गयी..उसे यकीन नहीं आ रहा था,कि वह इतना गिर सकता है.फिर उसे लगा उसका यह व्यवहार खाली पेट नशा कर लेने के कारण है. अभी खाना खायेगा तो सब कुछ ठीक हो जायेगा.परन्तु वह खाना खाने नहीं आया.शायद वह इस हालत में नहीं था.वह लड़खड़ाता हुआ सोने वाली कोठारी में जाकर पसर गया.
सीता का भी खाना खाने का मन नहीं किया.उसने सोचा था जब रघु आ जायेगा तब साथ मिलकर भोजन करेंगे.भोजन करते हुए भविष्य की कुछ रुपरेखा बनायेगे.पुराने सभी बाते भूलकर नए सिरे संबंधों को शुरू करेगें.मगर सोचा होता कहाँ है ? खैर, अब जो है सो है, काम तो यही करेंगा न? आखिर में, वह उसका पति है! परन्तु रघु के व्यवहार ने सब धूल धूसरित कर दिया था.फिर भी इतना अपमान सहकर भी वह किचेन में थी.उसका इंतजार कर रही थी. परन्तु वह किचेन में आया ही नहीं.
उसका मन बुरी तरह से खिन्न हो गया था.उसक मन किया ऐसे आदमी का मुंह न देखे.कही और चली जाये?.. कहाँ?.. बच्चे?.. फिर देखतें है..?…पति है.!.. अब जो है सो है…क्या किया जा सकता है?… अब जो है सो है…क्या किया जा सकता है?..निबाहना तो इसी से पड़ेगा….आखिर में वह पति है…….. परन्तु…किन्तु…उसके मन मश्तिष्क को मथ रहे थे. उसने अपने को उद्देलित होने और उलझन में पड़ने से बचाया. एक बार और प्रयास…?
वह कमरे में आई. रघु औधे मुंह गिरा पड़ा था.रघु की आँखे बंद थी.उसके मुंह से लार निकल रही थी.शायद बहुत ज्यादा पीकर आया है.वह नशे के कारण या तो सो गया है या बेहोश हो गया है.निश्चय ही वह भूखा होगा?
उसने सोचा एक बार फिर पूछा जाये.उसने एकदम पास जाके खाने के लिए पूछा. परन्तु उसकी आवाज वापस लौट आई.उसकी खर्राटे के स्थान पर साँस चलती सुनाई पड़ी, यह पास जाने पर पता चला. वह उसकी नींद के प्रति आश्वस्त होकर पास में लेट गयी. उसे भूख सता रही थी. खाली पेट उसे नींद नहीं आती. वह मन मसोस कर बिना आवाज किये लेटी रही.
वह जग रही थी. सीता को यह अजीब लगता कि रघु कुछ ऐसा नहीं करता जो भविष्य बेहतर की तरफ अग्रसर हो बल्कि उसके विपरीत आचरण होता है.वह जानती है कि वह शुरू से ही ऐसा है.जब तक सास ससुर थे घर की आर्थिक स्थिति काफी अच्छी थी पांच बीघा खेती और ससुर की मेहनत से आमदनी काफी अच्छी थी और एकमात्र लड़का रघु.एकलौतापन,लड़लापना और फिर पैसे वाले संगी- साथियों ने उसे कामचोर बना दिया था.उसे अच्छी तरह से याद है वह शादी के बाद भी कोई जिम्मेदारी का अनुभव नहीं करता था.शादी के बाद यह परिवर्तन जरुर आया था कि उसका साथियों का साथ कम से कम होता चला गया और उसका साथ, समीपता अधिक से अधिक बढ़ती गयी.परन्तु वह कुछ काम करने में रूचि नहीं दिखाता था. यहाँ तक बाप अपने साथ खेती में साथ देने को कहता तो वह अक्सर वह भी टाला करता था. वह उस समय चुप रहती मगर अब जब वे लोग नहीं है उसे बोलना ही पड़ता है. जो अक्सर विवाद का जनक होता है..उस समय भी वह बाहर से शांत दिखती परन्तु थी उस समय भी बहुत असंतुष्ट,उद्द्गिन. … उसका मन हर समय कचोटता रहता था कि उसकी वजह से रघु का निठल्लापन चरम पर पहुंचता जा रहा है.उसे उसका प्यार करना अच्छा लगता है.परन्तु प्यार का अतिरेक वितुष्णा को जन्म दे रहा था.उसकी अत्यधिक समीपता उकताहट और ऊंब पैदा कर रही थी.उसके मन में शिकायत जन्म ले रही थी.
प्रेम के अन्तरंग क्षणों में वह अक्सर ठिठक जाती. वह कहीं खो जाती,नीरस,अनुत्साहित और अविचल हो जाती.आज भी कुछ ऐसा ही हुआ कि वह प्रारंभ में ही ठिठक गयी.-उसे लेटे हुए अधिक समय नहीं गुजरा था.उसने महसूस किया रघु का हाथ हरकत करने लगा है.
वह उसके काफी अधिक निकट खिसक आया था.उसे अच्छी तरह याद है वह उससे काफी दूरी बना कर लेटी थी.वह बुरी तरह उससे नाराज थी.उसे यह बहुत नागवार गुजरता था कि वह हाथ उठाने लगा है.उसने अपने घर और अपने शहर में ऐसा कही नहीं देखा और सुना था.गवांर! देहाती,असभ्य.तमीज नहीं है,कैसे स्त्री साथ बिहैव किया जाता है?
सीता ने उसका हाथ झटक दिया.वह पूरी तरह होश में आ चुका था.उसकी नींद काफूर थी और सीता तो जग ही रही थी.रघु उठ बैठा.वह सीता से कुछ न बोला.सीता अँधेरे में आँख फाड़े सब कुछ देखने का असफल प्रयास करते हुए आभास के सहारे उसकी छाया का पीछा करती रही.
अब रघु ने उसके पैर पर हाथ रखा.उसने झटके से अपने पैर खींच लिए.उसने फिर उसके पैरों को कसकर जकड़ लिया और अपना सिर सीता के पैरो में रखकर फ़रियाद करने लगा.
“मुझे ! माफ़ कर दो,प्यारी ! अब कभी तुम पर हाथ नहीं उठाऊंगा.”
सीता के मुस्कराहट निकल गयी जिसे रात के अन्धेरें में वह देख नहीं पाया. उसे यह बड़ा अजीब लगा कि पति, पत्नी के पैर पकड़े और तो और अपना सिर उसके पैरों में रख दें. उसे लगा कि उसे पाप पड़ेगा.यह उल्टा है.
“चलो,कर दिया माफ़ ! अब पैर छोड़ो.” वह उठ बैठी थी. वह वैसे ही रहा.
“ नहीं..नहीं.. पहले वचन दो, वचन.” उसने उसकी पुतलियों के गीले स्पर्श का महसूस किया.
“कैसा, वचन ?” वह द्रवित हो आई.
“नहीं पहले वचन दो .” वह मनुहार करता रहा.
“अच्छा, वचन दिया. अब बोलो क्या कहते हो?”
“तुम मुझसे कभी नाराज नहीं होउंगी,मुझे कभी छोड़ कर नहीं जाओंगी.” वह सोचती रह गयी.उसने कब ऐसा कहाँ? वह याददास्त की गहरी घटिओं में उतरती चली गयी, परन्तु कुछ हासिल न हो सका. वह संज्ञाहीन पूर्णतया अशांत और अस्थिर थी.एकांत में पता नहीं किन ख्यालों में खो गयी.वह यह भी भूल गयी कि रघु अब भी उसका पैर पकड़े वैसा ही बैठा है.
रघु कुछ देर अपने उत्तर की प्रतीक्षा में रहा.उधर से कोई जवाब नहीं आया.सीता की आँखे बंद थी.शायद सो गयी है?उसने सोचा.
उसके भीतर वासना कि लहरें उठ उठ कर हिलोरें मार रही थीं.उसे सीता नहीं दिखाई पड़ी सिर्फ एक देह पड़ी थी,भोगने के लिए.जिस पर उसका निर्विवाद अधिकार है.
रघु के सिर, हाथ और सम्पूर्ण शरीर ने अपनी स्थिति बदल ली थी.उसने उसके शरीर को दबोच लिया और उस पर छा गया,और उसे अपने में एकाकार कर लिया.वह प्रतिरोधविहीन उस पर समर्पित हो गयी.दोनों भीगे थे और जाग्रत अवस्था में थे.
रात के एक बज रहे थे और दोनों मियां-बीबी रात का खाना रसोई में खा रहे थे.उनमे बिना समझ-बूझ के समझौता हो चुका था.
-राजा सिंह
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