प्रतिध्वनि
प्रतिध्वानित् ध्वनि,सिसकियां, बादल ,आंसू ,बारिश
कहां किसी बंधन से बंधी है
विकराल रूप धारण कर
सभी बांध तोड़ निकाल लेती है।
प्रीत _नारी, मर्यादा, मजबूरी
बंधी बंधन के खूंटे से….!
बंधी, बंदी सी जीवन क्यों
जीती है ………?
प्रतिकार नहीं, फिर क्यों प्रतिद्वंद्व को रोती हैं
प्रश्न
अषेश नहीं कही , मस्तिष्क में शोर मचाती है।
कर के प्रतिरोध खूंट का क्यों नहीं स्वतंत्रता से जीती है..?
बादल बन उड़ चले, मुक्त गगन पर स्वराज है
मुक्त हवा संग आकाश वक्ष विचरन करे कोई बंदिश वहां नहीं है..!
और बारिश मानिंद बरस धरा पर, तृष्णा तृप्त करें
गर्वित भान करें
बंधन तोड़, कर निकल
हिम्मत करें
नित्य नये आयाम रचें…!