प्रतिज्ञा लेता हूँ मैं , कभी नहीं दुष्ट कार्य करूँ
प्रतिज्ञा लेता हूँ मैं
कभी नहीं दुष्ट कार्य करूँ
वाकिफ़ नहीं हूँ आफ़त से
कठिनाईयां सारे झेलता रहूँ
सच्चाई के मार्ग पर
हमेशा मैं चलता रहूँ
झाँक-झाँक कर देखु दुखों को
कुछ करने के लिए चितंन रहूँ
जैसे चाँद छोडें न आसमान का साथ
वैसे ईमानदारी का हाथ पकड़ा रहूँ
भलाई हो लोगों की
ऐसा एक दृढ़ संकल्प करूँ
प्रतिज्ञा लेता हूँ मैं
कभी नहीं दुष्ट कार्य करूँ
क्षति पहुँचे नहीं औरों को
ऐसा ही व्यवहार करूँ
छिड़े जंग सीमा पर
तो सेना उसका उद्घार करें
छिपी बुराईयां भीतर तो
उसपर मैं प्रहार करूँ
दुख से घिरा कोई मिलें
जितना हो सकें उतना प्रबंध करू
हो निराश माता-पिता मेरे
वैसी न कोई दुष्ट कार्य करूँ
प्रतिज्ञा लेता हूँ मैं
कभी नहीं दुष्ट कार्य करू
स्वरचित
‘शेखर सागर’