प्रतिक्षा
बस यूँ समझ अन्याय का अंतिम पहर है यह,
ध्यान रख! समय-चक्र पर है भोर का स्थान भी आरक्षित,
तू बस विवशता की चादर उतारकर बना दे तह।
शुष्क रख आक्रोश तू अपना,
हीनता की नमी मत चढने दे,
शांत, धीर हो प्रतीक्षा कर,
ज्यों ही दिखे चिंगारी कोई,
लपट बनने उस ओर तू सरकना।
आँशू समझ बहाने की भूल न कर,
अरे बावरे! आहूतियाँ हैं ये,
सामाजिक न्याय-यज्ञ हेतु,
अभी तू इन्हें संरक्षित रख।
पांडवों ने सहा,
महाराणा ने बिताया,
अन्यायी रात का साया है यह,
रात है तो दिन भी होगा यहाँ।।
#किसानपुत्री_शोभा_यादव