प्रतिक्रिया
प्रतिक्रिया ,
तुम अब वैसी नही रही।
पहले तुम आमने सामने दिखा करती थी।
और नजरो से होते हुए
मन मे बैठ जाती थी।
तुम मेरी राह तका करती थी
कि मैं आऊंगा
और तुम्हारे साथ
अपने भाव बाँट लूंगा
अब तुम मोबाइल के
बटनों को तकती
मेरे अंगूठे की प्रतीक्षा मे हो।
इस नए अंदाज से मुझे
गुरेज तो नही।
पर वो आंखों आंखों
वाली बात ही और थी।
बात कही तो है तुमने
और वही बात कही है
बात सुनी भी है मैंने
और वही बात सुनी है
फिर भी कुछ छूट गया है
इस तरह बताने मे।