लोग कहते है तुम मोहब्बत में हारे हुवे , वो लोग हो !
सामाजिक और धार्मिक कार्यों में आगे कैसे बढ़ें?
यूं तो लाखों बहाने हैं तुझसे दूर जाने के,
दुखा कर दिल नहीं भरना कभी खलिहान तुम अपना
संघर्ष की आग से ही मेरी उत्पत्ति...
जिनपे लिखता हूँ मुहब्बत के तराने ज्यादा
कभी तो देखने आओ जहाँ हर बार लगता है
*धन्य डॉ. मनोज रस्तोगी (कुंडलिया)*
- साजिशो का दौर चल रहा सावधान रहो -
कान्हा मेरे जैसे छोटे से गोपाल
यह तुम्हारी नफरत ही दुश्मन है तुम्हारी
नमन तुम्हें नर-श्रेष्ठ...
शहर की बस्तियों में घोर सन्नाटा होता है,