प्रणय का प्रथम प्रयास
प्रणय का प्रथम प्रयास
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प्रणय का प्रथम प्रयास अजब बेबकूफी का होता है
लेकिन खूबसूरत और हलचल मचाने वाला होता है
कुछ मीठी खट्टी अनुभूतियाँ बुलबुलों सी उठती है
रहस्यमयी विचित्र छुई अनसुलझी पहेली सी होता है
नाद अनहदनाद दुन्दुभि मन मस्तिष्क में बज उठती
काया में बनने वाले आयामों को नाप आया करती है
त्रिभुज वृत आयत से माथे पर बन कर खींच जाते है
दुनियाँ में अपना सा बेचारा कोई नजर नहीं आता है
देखिए सृष्टि विकास की ओर बढ़ता यह मन्द कदम
कितनी जुर्रत जोखिम उठाने होते है नये आगाज को
प्रेम पथ का पर्थिक भी सिर पकड़ बैठ जाता बरबस
गड़गड़ाता विषमताओं का घनघोर बादल रह रह कर
कितनी सकारात्मक होती है लगाना लगन प्रणय से
मन बुझा बुझा सा बस चारों ओर धुँआ ही धुँआ होता
फिर जीवन यात्रा में प्रेम रीति को निभाना ही होता है
पकड़ उँगली प्रिय की राह चलते जहर भी पीना होता है
@@डॉ मधु त्रिवेदी@@
2/12/2015
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