” प्रजातंत्र की मार बड़ी है ” !!
कैसी यह तकरार छिड़ी है ,
प्रजातन्त्र की मार बड़ी है !!
सब अपने , समभाव दिखे ना ,
व्यापकता का भाव कहाँ है !
सबके अपने स्वार्थ सजे हैं ,
सबकी अपनी चाह यहाँ है !
मनमाने से हुए आचरण ,
लगे टूटती आज लड़ी है !!
अधिकारों की मांग उठे तो ,
खड़ा प्रशासन सीना ताने !
टोली टोली डोले जनता ,
किस्से रोज़ के हैं मनमाने !
कौन सुने है यहाँ कराहें ,
बस गरीब को मार पड़ी है !!
पीड़ित पक्ष रहे दुबका बस ,
आंदोलन की राह न पकड़े !
सरकारें मजबूत अगर हैं ,
कानूनों के पाश में जकड़े !
कब तक चुप्पी जन जन साधे ,
आज राह में अड़ी खड़ी है !!
अहंकार में राह न सूझे ,
बनती बात बिगड़ जाती है !
समाधान है बड़ा ज़रूरी ,
नज़रें अकसर लड़ जाती हैं !
प्रेमभाव पनपे अपनों में ,
सभी चाहते यही झड़ी है !!
स्वरचित / रचियता :
बृज व्यास
शाजापुर ( मध्यप्रदेश )