Sahityapedia
Sign in
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
4 Jun 2022 · 5 min read

*प्रखर राष्ट्रवादी श्री रामरूप गुप्त*

प्रखर राष्ट्रवादी श्री रामरूप गुप्त
■■■■■■■■■■■■■■■■■■
किसने “ज्योति” प्रकाशित की थी, समाचार यह सुप्त
किसने प्रथम चलाई ‘शाखा,’ तथ्य हो गया लुप्त
दोहरा-राज न माना जिसने, भगवे को फहराकर
नर-नाहर वह नगर – रामपुर, रामरूप जी गुप्त
श्री रामरूप गुप्त जी नहीं रहे । सत्रह नवम्बर 1990 की रात को उन्होंने दिल्ली के एक नर्सिंग होम में आखिरी साँस ली और इसी के साथ पत्रकारिता, साहित्य, चिन्तन और संस्कृति-सेवा से जुड़े एक बहुआयामी व्यक्तित्व का अवसान हो गया। बृजघाट पर गंगा के तट पर उनका अंतिम संस्कार हुआ ,जिसमें रामपुर से भी सर्व श्री भोला नाथ गुप्त, रामप्रकाश सर्राफ आदि निकट संबंधी और मित्र सम्मिलित हुए। उनकी उम्र सिर्फ लगभग पैंसठ वर्ष रही होगी, मगर बीमारियों से बोझिल शरीर का आत्मा ने बीच रास्ते साथ छोड़ दिया और उसी अनन्त आकाश में विलीन हो गई जिसकी रहस्यमयता से भरे तारों, नक्षत्रों और ग्रहों के विज्ञान-ज्योतिष को वह व्यसन के तौर पर अक्सर गहराई से अध्ययन किया करते थे और जिस पर उन्होंने अनेक लेख भी लिखे थे ।
दसियों साल पहले रामरूप जी रामपुर छोड़कर दिल्ली जाकर बस गए थे। पर, रामपुर उनकी चेतना से क्या कभी लुप्त हो सका ? और रामपुर भी तो अपने इस सपूत को कभी भुला नहीं सका । आखिर इसी रामपुर में वह जन्में थे, पले-बड़े हुए थे और शिक्षा पाई थी। रामपुर की जनता में जनतांत्रिक जीवन-मूल्यों का विकास और प्रखर राष्ट्रीयता से ओतप्रोत विचारधारा के प्रसार को अपने जीवन के महती लक्ष्यों में समाहित करके वह रामपुर से सदा-सदा के लिए जुड़ गए।
पत्रकारिता के क्षेत्र में ‘हिन्दुस्तान समाचार’ के वह नींव के पत्थरों में एक थे और इस समाचार एजेंसी को हिन्दी – विश्व की अग्रणी पंक्ति तक पहुँचा देने को लालसा से उनका असीमित श्रम कभी भुलाया नहीं जा सकता। एक पत्रकार के रूप में उन्होंने जिले की सीमाओं का अतिक्रमण करके “हिन्दुस्तान समाचार” को उसके निर्माण के प्रारंम्भिक दौर में स्वयं को समर्पित करते हुए अनथक योगदान किया था। लखनऊ में रहकर उन्हीं दिनों उन्होंने काफी समय तक पत्रकारिता-विश्व को अपनी सेवाओं से लाभान्वित किया था। साठ के दशक में वह रामपुर में पी० टी० आई० और पायनियर के सम्वाददाता रहे ।
श्री रामरूप जी की पत्रकारिता-क्षेत्र में सेवाओं का ऐतिहासिक कीर्ति स्तम्भ रामपुर से प्रकाशित सर्वप्रथम हिन्दी साप्ताहिकज्योति है। यह रामपुर से 26 जून1952 को शुरू होकर तीन वर्ष तक निकलता रहा था और इस नाते इसने अपने निर्भीक, निष्पक्ष और उच्च कोटि के नैतिकतापूर्ण और प्रखर राजनैतिक विचारों से ओतप्रोत रुझान से जनपद में एक विशिष्ट स्थान अर्जित कर लिया था। रामरूप जी इसके संस्थापकों में थे और बाद में तो वह ‘ज्योति’ के पर्याय ही बन गए। इतिहासकार रमेश कुमार जैन को लिखे गए अपने एक पत्र में राम रूप जी ने लिखा था कि ज्योति के प्रथम संपादक महेंद्र कुलश्रेष्ठ थे। बाद में राम रूप जी इसके संपादक बने। शुरू से आखिर तक राम रूप जी ही ज्योति के प्रकाशक रहे ।रामकुमार जी की हिंदुस्तान प्रिंटिंग प्रेस मिस्टन गंज से यह अखबार छपा।

रामप्रकाश सर्राफ आदि जनसंघ कार्यकर्ताओं के सहयोग से प्रकाशित इस साप्ताहिक पत्र के सम्पादन द्वारा रामरूप जी ने भारतीयता की भावना के विस्तार और हिन्दी तथा हिन्दुस्तान की कतिपय समस्याओं को गहराई से पाठकों के सम्मुख प्रस्तुत किया। रामरूप जी का अध्ययन, उनकी तर्क शुद्ध विचार शैली और भाषा पर उनके अधिकार ने “ज्योति” को शीघ्र ही रामपुर के समस्त विचारवान क्षेत्रों में लोकप्रिय कर दिया। मगर अपने दो टूक लेखन के कारण बहुत शीघ्र ही ‘ज्योति’ कुछ इस प्रकार की परिस्थितियों में फँस गया, जिसमें इसे आगे बढाते रहना सम्भव नहीं हो सका, मगर जो किरण प्रकाश बनकर ‘ज्योति’ के जेनरेटर से फूट पड़ी थीं, वह पत्रकारिता और लेखन के प्रति समर्पण से रूप में रामरूप जी में सदा जीवित रहीं। रामपुर जनपदीय हिन्दी पत्रकारिता का ऐसा कोई इतिहास नहीं हो सकता जो श्री रामरूप जी को प्रणाम किए बिना आगे बढ़ सके क्योंकि ‘ज्योति’ ही तो द्वितीया का वह चन्द्रमा था जो आज पूर्ण चन्द्र के रूप में सम्पूर्ण हिन्दी पत्रकारिता का स्वरूप बना हुआ है । यह सही है कि रामपुर से किसी को कभी न कभी कोई हिन्दी साप्ताहिक पहली बार निकालना ही था पर, पहली बार के जोखिम और साहस पर ही भविष्य की काफी सरलताओं के मार्ग भी टिके होते हैं और यह सचमुच एक दिलचस्प प्रयोग था कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ समूह द्वारा रामपुर से एक हिन्दी साप्ताहिक पहली-पहल निकला और यह सुयोग था कि उसे रामरूप जी के सुगढ़ हाथों ने गढ़ा ।
रामरूप जी और कई मायने में इतिहास-पुरुष रहे। अगर श्रेय किसी एक व्यक्ति को ही देना है, तो रामपुर में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की शाखा शुरू करने का पूरा श्रेय रामरूप जी को जाता है। इस मायने में वह रामपुर में संघ-शाखा के जनक थे । बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में उच्च शिक्षा ग्रहण करते हुए युवक रामरूप गुप्त ने संघ शाखा पर हिन्दुत्व आर राष्ट्रीयत्व का प्रथम पाठ सीखा और इस पाठ को अपने गृह-नगर रामपुर में पढाने के लिए संघ की शाखा को वह काशी से रामपुर तक ले आए। बाद में वह संघ के पूर्णकालिक प्रचारक भी बने। मगर पदों से हटकर देखा जाए तो बात यह निकलती है कि रामपुर में संघ कैसे शुरू हो, कैसे चले और कैसे बढ़े- यह रामरूप जी की समर्पित चिन्ताओं का एक समय केन्द्रीय विषय रहा है। रामपुर में संघ शुरू करना मामूली बात नहीं थी। रामपुर में संघ का होना एक गैर-मामूली बात थी-यह रामरूप जी के व्यक्तित्व की असाधारणता को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त है। दोहरी दासता भरी रियासत के दौर में जबकि नवाबी हकूमत पूरे तौर पर अधिनायकवाद की ज्वालामुखी ही थी- संघ जैसे विशुद्ध हिन्दू राष्ट्रीयत्व की गूंज पैदा करना एक बड़ी बात थी । तब खुले मैदानों की बजाय बन्द दीवारों में भगवा ध्वज को प्रणाम करने के लिए स्वयसेवक जुटते थे। शाखा, नवाबी शासन की आँख में बड़ी किरकिरी थी और अगर बड़ी न भी माना जाए, तो हमारा विनम्र निवेदन है कि रियासती सरकार के कायम रहने तक शहर में किसी का संघी होना किसी मायने में कम से कम कांग्रेसी होने से तो हर्गिज कम दुस्साहस का काम नहीं था ।
रियासत में संघ ने कई काम किए :-
(1) जनता में जनतन्त्र की चेतना जगाना
(2) आजादी की इच्छा का विस्तार करना
(3) हिन्दुत्व पर अभिमान करना और भारत की संस्कृति और परम्परा से परिचित कराना।
बेशक संघ हमेशा हिन्दू-संघ रहा मगर क्योंकि स्वतन्त्रता की कामना कभी भी हिन्दुत्व की विरोधी अवधारणा नहीं रही, इसलिए रामपुर में संघ की शाखा एक साथ हिन्दुत्व और राष्ट्रीयत्व के पांचजन्य-घोष का तीर्थ क्षेत्र बन गयी ।
रामरूप जी का व्यक्तित्व बहुत आकर्षक था। गोरा-चिट्टा रंग उनके शरीर की गुलाबी आभा से सामंजस्य स्थापित करके उन्हें अपूर्व कांति प्रदान करता था। सुनहरे फ्रेम का चश्मा उन्हें बहुत फबता था । वाणी के गांभीर्य के कारण उनका वक्ता-रूप बहुत मोहक था। वह स्वाभिमानी थे और दीनता उनके स्वभाव में कतई नहीं थी। वह बहुत खरी-खरी कहने और लिखने वालों में थे और अनेक बार ऐसी सत्य टिप्पणियाँ भी कर बैठते थे जो सम्बन्धित व्यक्तियों के लिए काफी कटु होती थीं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ अथवा पत्रकारिता के क्षेत्र में अपने प्रभाव का इस्तेमाल उन्होंने व्यक्तिगत लाभ के लिए कभी नहीं किया। वह भारत माता के ऐसे सपूत और विशेषकर रामपुर के ऐसे गौरवशाली रत्न थे जिनका सम्पूर्ण जीवन त्याग और समर्पण भावना से भरी साधना का पर्याय था। ‘ज्योति’ रामरूप जी की यशकीर्ति का अक्षय वाहक है। उनके कार्य और विचार आने वाली पीढ़ियों के लिए सदैव प्रेरणादायक रहेंगे।
————————————————–
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451
【नोट : यह लेख रामपुर से प्रकाशित हिंदी साप्ताहिक सहकारी युग 24 नवंबर 1990 अंक में प्रकाशित हो चुका है।】

530 Views
Books from Ravi Prakash
View all

You may also like these posts

- महफूज हो तुम -
- महफूज हो तुम -
bharat gehlot
सगळां तीरथ जोवियां, बुझी न मन री प्यास।
सगळां तीरथ जोवियां, बुझी न मन री प्यास।
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
ग़ज़ल
ग़ज़ल
Mahendra Narayan
दिवाकर उग गया देखो,नवल आकाश है हिंदी।
दिवाकर उग गया देखो,नवल आकाश है हिंदी।
Neelam Sharma
रमेशराज के विरोधरस दोहे
रमेशराज के विरोधरस दोहे
कवि रमेशराज
आजादी की कहानी
आजादी की कहानी
ओमप्रकाश भारती *ओम्*
*मनः संवाद----*
*मनः संवाद----*
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
श्री अन्न : पैदावार मिलेट्स की
श्री अन्न : पैदावार मिलेट्स की
ललकार भारद्वाज
The Tranquil Embrace Of The Night.
The Tranquil Embrace Of The Night.
Manisha Manjari
आग तो लगी हैं यंहा भी और वंहा भी
आग तो लगी हैं यंहा भी और वंहा भी
Abasaheb Sarjerao Mhaske
भक्ति रस की हाला का पान कराने वाली कृति मधुशाला हाला प्याला।
भक्ति रस की हाला का पान कराने वाली कृति मधुशाला हाला प्याला।
श्रीकृष्ण शुक्ल
मैं- आज की नारी
मैं- आज की नारी
Usha Gupta
मैं कौन हूँ कैसा हूँ तहकीकात ना कर
मैं कौन हूँ कैसा हूँ तहकीकात ना कर
VINOD CHAUHAN
"माता-पिता"
Dr. Kishan tandon kranti
बे सबब तिश्नगी.., कहाँ जाऊँ..?
बे सबब तिश्नगी.., कहाँ जाऊँ..?
पंकज परिंदा
4948.*पूर्णिका*
4948.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
जय जय हिन्दी
जय जय हिन्दी
gurudeenverma198
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
मतदान जरूरी है - हरवंश हृदय
हरवंश हृदय
#लघुकविता-
#लघुकविता-
*प्रणय*
*सुभान शाह मियॉं की मजार का यात्रा वृत्तांत (दिनांक 9 मार्च
*सुभान शाह मियॉं की मजार का यात्रा वृत्तांत (दिनांक 9 मार्च
Ravi Prakash
नींद का कुछ ,कुसूर थोड़ी था।
नींद का कुछ ,कुसूर थोड़ी था।
Dr fauzia Naseem shad
आंसूओ को इस तरह से पी गए हम
आंसूओ को इस तरह से पी गए हम
Nitu Sah
प्यार का सार है त्याग की भावना
प्यार का सार है त्याग की भावना
डॉ प्रवीण कुमार श्रीवास्तव, प्रेम
अपना सकल जमीर
अपना सकल जमीर
RAMESH SHARMA
हर रात उजालों को ये फ़िक्र रहती है,
हर रात उजालों को ये फ़िक्र रहती है,
डॉ. शशांक शर्मा "रईस"
भगवान सर्वव्यापी हैं ।
भगवान सर्वव्यापी हैं ।
ओनिका सेतिया 'अनु '
प्रदूषन
प्रदूषन
Bodhisatva kastooriya
श्री बिष्णु अवतार विश्व कर्मा
श्री बिष्णु अवतार विश्व कर्मा
डॉ विजय कुमार कन्नौजे
दिल पागल, आँखें दीवानी
दिल पागल, आँखें दीवानी
Pratibha Pandey
गृहणी
गृहणी
Sonam Puneet Dubey
Loading...