प्रकृति
पोषित कर प्रकृति हरा भरा बनाती है
रोपित कर प्रकृति हमें खाना खिलाती है
इसलिये खिलवाड़ प्रकृति से मत करिए
ऐसा कर जीवन अभिशापित मत करिए
इसलिये प्रकृति है जीवन के लिए वरदान
क्योंकि यह सर्वदा दिया करती है धन धान
अनावश्यक रुप से इसका दोहन न करो
ये देती है हमको छांव इसे काटा न करो
प्रकृति फैलाती है जो चहुँ ओर हरियाली
उससे अपनी होती है सदा ही रखवाली
प्रकृति देती जड़ चेतन को है जीवनदान
इसलिये प्रकृति है जीवन के लिए वरदान
जिसने इसकी परवाह न की मारा गया
जिसने रौंदा है पग तले इसे रूलाया गया
प्रकृति में संभावनाएं और अपार है खजाना
इस बात को तब से ले आज तक है माना
प्रकृति के मान से अपना बढ़ता है अभिमान
इसलिये प्रकृति है जीवन के लिए वरदान
नैसर्गिक सुषमा बिखेर सोना उगलती है
अनगिनत कवियों की कल्पना में पलती है
चाहे मेघदूत हो चाहे ऋतु संहार बरनन
प्रकृति की माटी में पलता जन गण मन
प्रकृति से ही बढ़ता है देश का स्वाभिमान
इसलिये प्रकृति है जीवन के लिए वरदान