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22 Dec 2020 · 1 min read

प्रकृति

देखो मद मस्त हो नाच रही है प्रकृति
नव नवोढा सी इठला रही है प्रकृति

जब रवि रश्मि रथी पर चढ़ आए , ऊषा अम्बर पन घट भर रही
कान्ति पड़े रश्मियों की जब , आभा प्रकृति कीचांदी सी चमक रही
सुध बुध खो बैठी , जब मरीचिमाली किरणों में खुद को नहला रही

नव नवोढा सी ——–

रक्तिम फूलों के परिधान पहने , डाल डाल पात पात लहरा रही
जब हिलोरे मारे सरसों खेतों में , गीत प्रिय मिलन के गा रही
मेघा घर्र घर्र गरजे दामिनी बीच , कोमल कान्त अंग सहला रही

नव नवोढा ——

जब दादुर की टर्र टर्र हो , पपीहा की होती है पीऊ पीऊ
मन अन्तस को भिगो भिगो , प्रेम का स्पदन पा रही
वसुधा का ताप हो जलती , जीर्ण शीर्ण काय हो कर कुम्हला रही

नव नवोढा ———-

बागों में बौर आये जब अमुवा के , मीठी कोपलें तन सजा रही
रंग बिरंगे प्रसूनों को जब देखे , हरी भरी होकर लहरा रही
डालों पर पडे झूले जब , पवन दे झोका झूला झूला रही

नव नवोढा ———-

Language: Hindi
Tag: गीत
71 Likes · 1 Comment · 414 Views
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