प्रकृति
देखो मद मस्त हो नाच रही है प्रकृति
नव नवोढा सी इठला रही है प्रकृति
जब रवि रश्मि रथी पर चढ़ आए , ऊषा अम्बर पन घट भर रही
कान्ति पड़े रश्मियों की जब , आभा प्रकृति कीचांदी सी चमक रही
सुध बुध खो बैठी , जब मरीचिमाली किरणों में खुद को नहला रही
नव नवोढा सी ——–
रक्तिम फूलों के परिधान पहने , डाल डाल पात पात लहरा रही
जब हिलोरे मारे सरसों खेतों में , गीत प्रिय मिलन के गा रही
मेघा घर्र घर्र गरजे दामिनी बीच , कोमल कान्त अंग सहला रही
नव नवोढा ——
जब दादुर की टर्र टर्र हो , पपीहा की होती है पीऊ पीऊ
मन अन्तस को भिगो भिगो , प्रेम का स्पदन पा रही
वसुधा का ताप हो जलती , जीर्ण शीर्ण काय हो कर कुम्हला रही
नव नवोढा ———-
बागों में बौर आये जब अमुवा के , मीठी कोपलें तन सजा रही
रंग बिरंगे प्रसूनों को जब देखे , हरी भरी होकर लहरा रही
डालों पर पडे झूले जब , पवन दे झोका झूला झूला रही
नव नवोढा ———-