प्रकृति
झूम झूम के प्रकृति , देती नित संदेश
धरा एक रंग मंच है , बदल रहे नित वेश
आना जाना नियम है , करे जिसे हम पूर
होती सबकी एक गति , कोई नाही दूर
राजा हो या रंक हो , जाये उस ही राह
आयेगा जब बुलावा , धरी रहे हर चाह
माटी की है देह यह , नाहीं उसका मोल
करता अच्छे कर्म जो , होय उसका तोल ,
अन्त समय निकट हो जब,अपने छोड़े हाथ
जाये कोई साथ नहिं ,धर्म चले बस साथ