प्रकृति है सबसे बड़ी गुरु ( शिक्षक -दिवस पर विशेष )
प्रकृति है सबसे बड़ी गुरु ,
आदि और अनंत से गुरु ,
सनातन है सत्य है यह ,
शाश्वत है परम गुरु ।
जीवन- मरण की परिभाषा ,
यह समझाये ,
विध्वंस और विनाश की महत्ता ,
भी यह समझाये ।
प्रकृति का कण- कण है विभिन्न ज्ञान ,
को समेटे ।
भला प्रकृति से बड़ा गुरु कौन कहलाए।
सभी वेद ,पुराणों ,शास्त्रों में दर्ज़ है जो मानवता ,
उस मानवता का पाठ प्रकृति पढ़ाये।
पर्वतों से अटलता और विशालता ,
मानव के ह्रदय को सिखाये ।
नदियों में शीतलता और निर्मलता ,
मानव को अहिंसा ,दया और प्रेम सिखाये ।
वृक्षों का परोपकार ,स्नेह-आश्रय ,
मानव में अपने ही गुण जगाए।
धरती सिखाये सहनशीलता ,अपनी संतान हेतु ,
जो हर प्रकार का कष्ट उठाए ।
आकाश सिखाये समरसता ,
भले -बुरे प्राणियों को एक छ्त्र में समेटे हुए ।
हवा की अविरलता ,और गति ,
मानव के श्वासों में विकास का नया जोश जगाए ।
सूरज की तपन ,और चाँद की शीतलता ,
कहाँ प्राणियों में भेद कराये !
तो इस प्रकार यह प्रकृति कितना देती है,
अन्न ,प्राण , स्थान , ऊर्जा ,जीवन और शिक्षा ,
सभी कुछ तो देती है, देते नहीं अघाती है।
बस देती है ,लेती कुछ नहीं,
निस्वार्थता का सबसे बड़ा गुण मानवों को सिखाती है।
मेरी दृष्टि में सबसे बड़ी गुरु हमारी प्रकृति है।
जो ईश्वर ने हमें प्रदान की है।
इस प्रकृति का सम्मान करो ,इसकी संभाल करो ,
क्योंकि हमारी सबसे बड़ी गुरु हमारी प्रकृति है।