प्रकृति (सजल)
तेरी आगोश,
पलता जीवन ये।
सुख सागर,
चर अचर सब,
सबसे ऊँचा रब।
धूप छाँव,
नदी नाले सागर।
सूरज चाँद,
कलकल ये झरने,
मन्द सागर बहने।
हरे गहने,
समृद्धि के सूचक।
प्राण वायुदा,
शीतल छाया देते,
शोभा बढ़ाते रहते।
देती नदियाँ,
जल अमृत हमें।
सुंदर जीवन,
कलकल करके बहना,
अपनी मौज रहना।
तेरे समक्ष,
धरा वासी मानव।
होते वाचाल,
तू सबकी रक्षक,
करो दुष्ट भक्षक।
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अशोक शर्मा, कुशीनगर,उ.प्र