— प्रकृति संरक्षण दिवस —
क्या आप सब जानते हैं, ? कि आज प्रकृति के संरक्षण का दिवस विश्व भर में मनाया जा रहा है, लोगों ने आज सुबह से ही सन्देश भेजने शुरू कर दिए हैं, अखबारों में भी प्रसारित किया गया है, शायद कुछ देर बाद चैनल पर भी प्रसारण शुरू हो जाएगा, कि हम सब मिलकर प्रकृति का संरक्षण करें !!
एक बात यहाँ बिलकुल साफ़ है, कि क्या हम सब प्रकृति के प्रति सजग हैं ? क्या हम सब उस की रक्षा के लिए वचनबद हैं ?? क्या जब हमारे और आपके शहर के बीच में से सड़कों का चौड़ीकरण किया जा रहा था..तो आस पास के सारे हरे भरे पेड़ काट के रख दिए गए थे , किसी ने उनका विरोध किया था ??? नही किया ..क्यूंकि वो सरकार कर रही थी..अगर कोई आम आदमी पेड़ काटने लगता , जो हरा भरा होता , तो उस को जेल का रास्ता देखने को मिल जाता , यह केवल हम अपनी सुविधा के लिए शांत थे, ताकि, सड़कों पर जाम न लगे..आने जाने में कोई दिक्कत महसूस न हो..रास्ता सुगम बन जाए , उस के बावजूद , हर घर में तीन तीन चार चार चौपहीया वाहन की लाइन लगी पड़ी है..सड़क पर भीड़ क्यूं नही बढ़ेगी..जब इंसान की हवस शांत होने का नाम नही ले रही है, तो पेड़ों की कटान कैसे रूक सकती है…??
आज पहाड़ों पर घुमने के लिए दुनिया बेचैन हो रही है..हमारे इंजिनीयरिंग वाले दिन रात एक कर के पुलों का निर्माण कर रहे हैं, उस के लिए बेशक उनको कितने ही पहाड़ों को काटना पड़े, उस की नीव को हिलाना पड़े, डाईनामाईट से उडाना पड़े, फिर बेशक पहाड़ कमजोर ही क्यूं न हो जाए…बस दुनिया को सुविधा मिलनी चाहिए,पर्यटकों को आनन्द मिलना चाहिए, उनकी सुख सुविधा में कोई परेशानी न हो, वो हिल स्टेशन का पूरा मजा ले सकें..ऐसी ही चीजों की वजह ने आज प्रक्रति को हिला के रख दिया है..और उस के वावजूद आज पहाड़ कमजोर तो हुए ही हैं, साथ ही साथ वहां जमीन का खिसक जाना , पत्थर गिर जाना , लोगों की जान जा रही है, घुमने की बजाय उनकी लाश घर तक आ रही है, जमीन इतनी खोखली हो चुकी है, कि किसी भी वकत रास्ता गहरी खाई में समां जाता है, और घुमक्कड़ लोग , वहां बगले झांकते नजर आते हैं, कि अब किस तरह से निकल सकेंगे , तो यह सब तरह से क्या प्रकृति के संरक्षण का नतीजा है ? यह केवल अपनी शान को विश्वपटल पर शोभाएमान करने के लिए नजर आता है !!कुछ दिन पहले ही यह देखा गया कि , कितने बोल्टर वहां नहाते , घूमते पर्यटकों के उप्पर गिरे, पुल तक टूट के धराशाई हो गया, लोग मौत के मुंह में समां गए , इन सब से क्या सबक मिलता है, कि क्या हम खुद अपने हाथों से प्रकृति को नही उजाड़ रहे हैं ?
कितने खेत उजाड़ दिए, उस का मुआवजा जिनको मिला, उन में से कई उस मुआवजे तक को पचा न सके और जो कभी नही किया वो गलत काम करते करते सारे पैसे का सत्यानाश कर बैठे , हुआ क्या , न घर के रहे, न घाट के, आज खेती का कितना नुक्सान हो रहा है.,हरे भरे लेह लहाते खेत खलिहान उजड़ते नजर आने लगे हैं, हरी भरी धरती में कभी इतने जलजले नही आये थे, जितने आज के समय में चारों तरफ देखने और सुनाने को मिलते हैं !!नदियों के बहाव किसी जान लेवा माजर से कम नही हैं, जब वो अपने क्रोध में आती हैं, तो अच्छे अच्छे उस की गोद में समां जाते हैं, उस वक कुछ काम नही आता , सिवा उप्पर वाले के , उस के बाद भी लोग उस चीज को भूल जाते हेई, किसी तरह का कोई सबक नही लेते !!
अभी भी समय है, इंसान को सतर्क हो जाना चाहिए, कि वो प्रकृति संरक्षण दिवस पर कसम खाए, कि हम इस धरा के साथ, हरियाली के साथ छेड़खानी करना बंद कर देंगे, तभी ऐसे दिवस मनाने का कोई फायदा है, अन्यथा कागज़ काले कर कर के दुनिया भर में यह बताना कि आज प्रकृति संरक्षण दिवस है, हम उस को मन रहे हैं, कोई फायदा नही है, ऐसे दिन को मनाने का , उजडती हुई हरियाली को उजड़ने से रोकना पड़ेगा , कठोर कदम और क़ानून बनाने की आवश्यकता फिर से आन पड़ी है, कि कोई भी प्रकृति के साथ गलत न करे , जन जन तक ऐसे सन्देश का पहुंचना बेहद आवश्यक है !! अब उस में आप भी भागीदार बने तो ईश्वर को भी अच्छा लगेगा, जिस ने हम सब को प्रकृति के कितनी सुंदर नेमत प्रदान की है !!
धन्यवाद् आपने अपना समय दिया !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ