प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा
विषय – प्रकृति शक्ति सौम्य रूपा
असंख्य वीरो की जननी, सृष्टि मानव जीवनदायिनी है।
अनेकों संसाधन पूरित, समूचे खजाने की स्वामिनी है।।
ममनमोहक रमणीक स्थल, सुन्दर प्रकृति की शान है।
ऊँचे गगन को चूमते कानन, इस धरती की पहचान है।।
कल कल करती सरिता, मदमस्त मगन होकर बहती।
खग कलरव निर्मल नीर, निश्छलता बखान है कहती।।
शीतलता की ओढ़े चादर, प्रेममय जीवन स्वरूपा यह।
अनेकों रंग बिखेरे आँचल में, प्रकृति सौम्य रूपा यह।।
आगमन से बरखा रानी के, हरी भरी स्वयं हो जाती है।
शीतकाल में हिम स्वरूपा, श्वेतधारिणी ये कहलाती है।।
आए बसंत बन पीताम्बरी, महके फूलों की बहार से।
पतझड़ बाद नवपल्लव, नवकोपल लगे सदाबहार से।।
कष्ट सहन कर के हमारे, माँ बनकर फ़र्ज निभाती है।
हम सबको समेटे आँचल में, माँ भारती कहलाती है।।
Rekha kapse (रेखा कमलेश ) “लकीर ”
होशंगाबाद (म प्र)