क्षितिज
उदिप्त हो रहा हो भास्कर ,
या अस्ताचल गामी है।
खोल रहा किरणों के पंख,
या डूबने की तैयारी है।
मनहर विहंगम दृश्य नभ का,
देख हृदय कंवल खिल आया है।
ताम्र रंग से संपूर्ण गगन को,
किस कलाकार ने सजाया है।
खेले बादलों संग आँख मिचोली,
पेड़ों के झुरमुट से कभी झांके है।
उड़ते पंक्षियों का कलरव,
उनींदी निंदिया से जागें है।
धरा गगन के बीचो बीच जैसे,
कोई प्रकाश पुंज जगमगाया है।
धरती पर फैली किरणों की आभा ने ,
जीवन संदेशा सुनाया है।
क्षितिज पर विहंगम दृश्य सजा है,
किसने सजायी अंबर पर रंगोली है।
किस चित्रकार की कल्पना साकार,
किसने अपनी तूलिका बिखेरी है।
–मनीषा सहाय सुमन