**प्रकृति पूरे क्रोध में, नभ बरसे बरसात**
**प्रकृति पूरे क्रोध में, नभ बरसे बरसात**
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प्रकृति पूरे क्रोध में, नभ बरसे बरसात।
आँधी पानी बाढ़ से, दिलाए कौन निजात।।
सड़कों पर पानी चले, भरे नदी तालाब।
घर आंगन भी बह गये,हालत बहुत खराब।।
कुदरत है आक्रोश में,मानव से नाराज।
मनमानी और लोभ से,बिगड़े सारे काज।।
भरे खेत खलिहान हैँ ,डूब गए मैदान।
जलवृष्टि के बहाव से, जलमग्न रेगिस्तान।।
मनसीरत मंजर बुरा, हाल हुआ बेहाल।
नटराज रौद्र रूप में, काम करे ना ढाल।।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)