प्रकृति परिवेश वर्षा से रंग – बे गुलशन खिलता
प्रकृति परिवेश वर्षा से रंग-बे गुलशन खिलता।
देखकर के ये सब जग सारा झूम उठता ।।
हे प्रभू प्रकृति को सजाया सँवारा तुमने ऐसा ।
रंग- बिरंगी सा मानों रूप अलंकार जैसा ।।
कोकिल करती मधुर गान मनमोहक होती रात।
हे कोकिल अब करों न तुम वर्षा की बात।।
प्रकृति परिवेश वर्षा…………. ……………..1
है नभ वर्षा कर दें ताकि हों पानी का संचार।
दश फूट पता नही पर बादल से ढकाँ संसार।।
बादल वर्षा कर दें सब ओर हरयाली छायेगी
बूँद – बूँद सी बौछारे ही नवजीवन लायेगी ।।
हरी-भरी हरियाली ते ओर रंग सवेरा लायेगी।
अँखियो के आँचल में खूशहाली भर आयेगी।।
प्रकृति परिवेश वर्षा…………. ……………..2
मूझ ह्रदय भर-भर रह – रह कर ये कहता।
कोकिल तेरा मधूर गान ह्रदय ठंडा कर देता।।
कोकिल तूम तो रजनी को क्यों नहीं गाती हो।
क्यों बादल को वर्षा के लिए नहीं बुलाती हो।।
तूम्हारा गान बहूत ही प्रिय व्याकूलता वाला ।
वर्षा की रठ मे तो अधिक मधूर राग सूनेला।।
प्रकृति परिवेश वर्षा…………. ………………3
कोकिल तू काली हैं रजनी भी होती काली ।कोकिल तेरे गान- बखान की बातें निराली ।।
है प्रकृति पर्यावरण तेरा रंग अनमोल अद्भुत ।
प्रदुषण जो करता छूपा मूखौटा प्रकृति कपूत।।
प्रकृति तेरे को क्या सजाया सँवारा अमोल सा।
नया-नया रंग भरकर जैसे अंकुरण खोल सा।।
प्रकृति परिवेश वर्षा…………………………….4
रणजीत सिंह “रणदेव” चारण
मूण्डकोशियाँ
7300174927