प्रकृति क्यों बदला लेती है ?—आर के रस्तोगी
घनघोर घटायें घिर रही,घन भी घडघडाहट कर रहे |
दामिनी दम दम दमक रही,ये दिन को रात कर रहे ||
ओलावृष्टि भी हो रही,धरती भी सफेद चादर ओढ़ रही |
चारो और हाहाकार मचा,कैसी भू पर अनावृष्टि हो रही ||
चारो तरफ जीवन अस्त-वयस्त है,बिजली भी चली गयी |
चारो तरफ अँधेरा छा गया ये कैसी हालत हमारी हो गयी ||
कभी किसी ने क्या सोचा है,हम पर संकट क्यों आता है ?
जब अनाचार बढ़ जाता है,दुनिया में तब ऐसा होता है ||
मत काटो तुम पेड़ पोधो को, न प्रकृति का तुम दोहन करो |
प्रकृति भी अपना बदला लेती है,न उस पर कभी वार करो ||
यह रस्तोगी का संदेश नहीं,यह प्रकृति का कड़ा आदेश है |
इसको मानो या न मानो तुम,ये केवल प्रकृति का निर्देश है ||
आर के रस्तोगी
मो 9971006425