प्रकृति के स्वरूप
वायु ,
अनल ,
भूमि,
बहुतर,
गगन,
बादल – दल वर्षा कारक,
जीवित को,
मिलता ,
जीवन का अमृत जल,
सब प्रकृति के रूप हैं।।
इन्ही से ,
इन्हीं तक ही सीमित है,
जीवन मानव का।
यहीं प्रारंभ ,
मध्य जीवन,
अन्त सभी का।।
ये ही प्राण – श्वसन्,
पाक – दहन ,
वास – निवास और
चलती काया के बल हैं,
सब प्रकृति के रूप हैं।।
वायु का प्रबल वेग,
बनता है प्रकृतिवश,
झंझावात ,
भय – जंजाल,
जकड़ता है अन्तस् को,
जो,
सब प्रकृति के रूप हैं।।
दावानल ,
भस्मसात् करता है,
समस्त,
वन – वन्य को,
विनाशरूपी उसकी,
है जिह्वा – आस्वाद,
त्रास, त्राहि भाव ,
सब प्रकृति के रूप हैं।।
भूमि में कम्पन से ,
भर्भरा जाती हैं,
इमारते,
आलीशान ,
उनका भी,
मिट जाता है,
नामोनिशान,
जिससे,
सब प्रकृति के रूप हैं।।
जल – साक्षात् जीवन ,
साक्षात् प्रलय,
नमी,
ऊर्जा भंडार,
असीमित ,
अगणित जीवन का ,
आधार,
पुरातन से चिर काल तलक,
सब प्रकृति के रूप हैं।
पर,
ज्वार – भाटा,
सुनामी वेग,
मुसलाधार वर्षा ,
डूबते खेत,
फसल कर विफल ,
जल होकर भी जलते कल,
सब प्रकृति के बल,
उसके स्वरूप हैं।।
हर्ष – हास,
आनंदित,
रति – सन्तुष्ट,
विलास – रास,
उत्साह – व्यग्र,
त्वरित प्रयास।।
करुणा – शोक,
बिछोह,
भय – सशोक,
निराशा उपभोग,
रौद्र – दृष्टिक्षेप,
उग्रता घोर।।
बीभत्स – लेप,
जुगुप्सित दिशा,
शान्त – मौन,
मनन के,
नव रस भी सब प्रकृति के रूप हैं।।
##समाप्त