प्रकृति के बसाबह
प्रकृति के बसाबह
हौ कंक्रीटक महल अटारी मे चूर
तूं सब प्रकृति के नै उजारह?
हौ सब मिल गाछ बिरिछ लगाबह
आबह उजरल प्रकृति के हरियर क बसाबह.
गाछ बिरिछ खेत पथार पोखैर इनार
सबटा तोरे बेगरता पर काज औतह.
चहचह करैत चिड़ै चुनमुन आ चरैत माल जाल
देखहक प्रकृति रूप सोहाबन केहेन कमाल.
प्रकृति संग मनुक्खो के जिनगी सोहनगर हेतै
आबह प्रकृति पर्यावरण के सब मिलि बचाबह
देखहक कतेक खुशियार हेतह जिनगी
हौ सब मिल गाछ बिरिछ लगाबह.
गलवोल वार्मिंग स तबाह भ रहलै मनुक्खक जिनगी
तइयो आधुनिकता के चक्करफांस मे प्रकृति के नै उजारह
हौ आबो सचेत भऽ जाई जाह महातबाही स बंचअह
आबह उजरल प्रकृति के हरियर कचोर क बसाबह.
कवि- डाॅ. किशन कारीगर
(©काॅपीराईट)