प्रकृति के पाठ
असमय आए तूफ़ान ने ,
झाड़े पेड़-पौधों के सुंदर फूल ।
कुछ पल पूर्व रंगों की बहार थी ,
हवाओं ने उड़ा दिए सब रंग ।
देख रहे हैं पेड़ खड़े मौन,
समझने की कोशिश कर रहे हैं समय की ज़ुबान ।
समय के आगे कौन मुँह खोल सका है ,
सुखी वही जिसने सब्र का फल चखा है ।
हिला गया मज़बूत से मज़बूत पेड़ों को तूफ़ान ,
हिलाया, झकझोरा ,पर तोड़ नहीं पाया ।
होते ही ख़त्म तूफ़ान ,
पेड़ों ने फिर सिर उठाया ।
क्या खोया भूल गए ,
कैसे फिर पाना है उसमें जुट गए ।
पश्चात्ताप में जो डूबे वो लुट गए ,
कर्मी आगे बढ़ गए ।
पेड़ों पर फिर फूल आए ,
जुनून और उम्मीद वो कहलाए ।
तूफ़ानों में डटे रहने के ,
प्रकृति पाठ पढ़ाती है ।
न छूटे ग़र हाथ से मँझधार में पतवार ,
तो कश्ती पार लगाती है ।
इन पेड़ों को कौन सहलाता है ?
कौन इनके घावों पर मरहम लगाता है ?
इनका भरोसा ही इनमें ताक़त भरता है ,
उजड़ कर फिर हर पौधा सुंदर फूल खिलाता है ।
नीचे धरती ऊपर आसमान का आशीर्वाद वही पाता है,
जो हर तूफ़ान में मज़बूती से डटा रहता है ।
ग़र हम निडर बन खड़े रहे तो तूफ़ान भी लौट जाएँगे ,
जाकर किसी और का दर खटखटाएँगे ।
हिम्मत है तो जीवन है ,
कर्मयोगियों का हर क्षण मनभावन है ।
इंदु नांदल , विश्व रिकॉर्ड होल्डर
इंडोनेशिया
स्वरचित