प्रकृति के दोहे
पेड़ हमारा साथ दें , सूखें लकड़ी अंत।
छाया ये फल फूल दें , स्वार्थी नहीं अनंत।।
हरी – भरी होगी धरा , स्वस्थ रहे इंसान।
अगर प्रदूषित ये हुई , रोगों का है स्थान।।
बैठ प्रकृति की गोद में , माँ – सा मिले दुलार।
सब कुछ देती स्नेह से , जीवन का आधार।।
जीवन पालन हार जो , करे उसे बरबाद।
बैठा काटे डाल वो , कैसे हो आबाद।।
आया सावन झूम के , पेड़ लगा नर – नार।
हरी – भरी धरती बने , स्वच्छ हवा उपहार।।
हरा – भरा सब देखके , बढ़ता जाए ख़ून।
सजता मौसम चक्र तो , रहता कहीं न सून।।
पेड़ लगाके प्यार से , सींचो जब तक चाह।
देख मेहनत रूप को , निकले एकदिन वाह।।
महके उपवन बैठ के , रोगी बने निरोग।
रोता हँस दे शान से , संगत का संयोग।।
सुंदरता को देख के , बढ़े उम्र है ख़ूब।
दुख छूमंतर पाइए , मिलता जब महबूब।।
प्रीत प्रकृति से जोड़िए , छूटे जग का भार।
समय मस्त हो बीतता , स्वर्ग बने संसार।।
(C)-आर.एस. “प्रीतम”