“””प्रकृति के चमत्कार””” कविता
***प्रकृति के चमत्कार***
नमस्कार नमस्कार !
अभी तक हमने लिखे पढ़े हैं,
विज्ञान के चमत्कार।
आइए आज जानते हैं,
प्रकृति के चमत्कार।।
जब जब मानव ने,
प्रकृति से खिलवाड़ किया।
उसके नियमों पर वार किया।
बदला उसने अपना,
धर विकराल रूप अवश्य लिया।
जानते हम सभी हैं,
पर बदल नहीं रहे व्यवहार।।
कलकल बहती नदिया सूखी।
सर्दी गर्मी या वर्षा ,
सब में दिखती बेरुखी।
दिखता चारों ओर हाहाकार।
है यह सब प्रकृति का चमत्कार।।
बिन पानी के तरस रहे हैं।
अंगारे गगन से बरस रहे हैं।
न खेलो प्रकृति से हर बार।
आगे न जाने और भी क्या क्या,
दिखाएगी प्रकृति चमत्कार।।
राजेश व्यास अनुनय