प्रकृति की हर एक पात में तू
प्रकृति की हर एक पात में तू
प्रकृति की हर एक पात में तू
गीता , बाइबिल , शब्द ग्रन्थ, कुरआन में तू
बस रहा प्रकृति के हर एक कण में
कृष्ण , क्राइस्ट , सच्चे बादशाह , अल्लाह में तू
प्रकृति के आँचल का नूर है तू
मंदिर, मस्जिद, चर्च, गुरद्वारे में तू
हर एक जीव में जीवात्मा में तू
कहीं झोपड़ी कहीं महलों में बसता है तू
कहीं किसी की आह में तो कही किसी की वाह में तू
जल में , धरा पर , अम्बर में , पाताल में तू
शब्दों के आकार में , किताब में तू
विचारों की चर्चा पर वाद – विवाद में तू
पीर जिनकी मिटाए , उनकी दुआओं में तू
जो तुझे समझ नहीं पाते , उनकी आहों में तू
कहीं साकार कहीं निराकार है तू
कहीं बदल बन बरसे तो कहीं आग है तू
दिन के उजाले तो रात के अँधेरे में है तू
खुशियों की बेला में तो कभी ग़मों के एहसास में तू
मानवता के ज़ज्बे , इंसानियत के एहसास में तू
प्रार्थना, इबादत, दुआओं के समंदर में पतवार है तू