प्रकृति की यही मांग,हे इंसान खुद को जान – आनंदश्री
प्रकृति की यही मांग,हे इंसान खुद को जान – आनंदश्री
जिस माहौल में हम जी रहे है यह एक चिंतित करने वाला माहौल है। लेकिन इंसान चाहे तो आने आप को इस नकारात्मक में सकारात्मक हो कर अपने आप का आत्ममंथन करते हुए स्वयम की खोज कर सकता है।
मनोवैज्ञानिक कहते हैं:
स्वयं के मनोविज्ञान को समझने का मतलब है कि अपनी सफलता और विफलता, प्यार और नफरत, कड़वाहट और खुशी के बीच अंतर को जानना। वास्तविक स्वयं की खोज एक ढहती शादी को बचा सकती है, एक लड़खड़ाते कैरियर को फिर से बना सकती है, और “व्यक्तित्व की विफलता” के शिकार लोगों को बदल सकती है। रूपांतरण कर सकती है। अपने वास्तविक स्व की खोज का अर्थ है स्वतंत्रता और अनुरूपता की मजबूरियों के बीच का अंतर को जानना, अपने आप को जानना। बेहतर जीवन के लि इस सदी की सबसे महत्वपूर्ण मनोवैज्ञानिक खोज “सेल्फ-इमेज” है।
जानिए अपने सेल्फ इमेज को
चाहे हम इसे महसूस करें या न करें, हम में से प्रत्येक हमारे साथ एक मानसिक खाका या खुद की तस्वीर रखता है। हो सकता है कि यह अस्पष्ट और हमारे सचेत रूप से बीमार हो। यह आत्म-छवि है “मैं किस तरह का व्यक्ति हूँ,” हमारी अपनी धारणा क्या है। यह हमारे बारे में हमारी अपनी मान्यताओं से निर्मित है।
अपनी आत्मछवि हैम स्वयं ही बनाते है।
“सकारात्मक सोच” से अपनी आत्म-छवि को बनाया जा सकता है।
वास्तव, में किसी विशेष स्थिति के बारे में सकारात्मक रूप से सोचना असंभव है जब तक कि आप अपने “आत्म” की एक नकारात्मक अवधारणा को बनाते हैं। कई प्रयोगों से पता चला है कि एक बार स्वयं की अवधारणा बदल जाने के बाद, स्वयं की नई अवधारणा के अनुरूप अन्य चीजें आसानी से और बिना तनाव के पूरी हो जाती हैं। आप बदल जाते हो पूरी तरह से।
मनोवैज्ञानिक लेकी ने “विचारों की प्रणाली” के रूप में व्यक्तित्व की कल्पना की है। वह कहते है कि सिस्टम के साथ असंगत विचारों को अस्वीकार कर दिया जाता है, जब “विश्वास नहीं किया जाता है,” और उस पर कार्य नहीं की जाती है। सिस्टम के अनुरूप प्रतीत होने वाले विचार हैं आपमें बदलाव लाते है।
आत्म-छवि के दो महत्वपूर्ण खोज जो बेहतर जीवन जीने की सुनहरी कुंजी बन सकती है:
1. आपके सभी कार्य, भावनाएं, व्यवहार-यहां तक कि आपकी क्षमताएं-हमेशा इस आत्म-छवि के अनुरूप हैं। संक्षेप में, आप उस व्यक्ति की तरह “कार्य” करेंगे जैसे आप स्वयं को होने के लिए मानते हैं। इतना ही नहीं, लेकिन , आप वैसे ही बनने लगोगे।
आप अपने सभी सचेत प्रयासों या इच्छाशक्ति के बावजूद वस्तुतः कार्य नहीं कर सकते हैं। वह आदमी जो खुद को “असफलता-प्रकार” होने की कल्पना करता है वह असफल हो जाता है। लेकिन इसका उल्टा भी सच है कि आप से अपने आप कैसी भी परिस्थिति में सफल मानो , आप सफल बन जाओगे।
2- सेल्फ इमेज को बदला जा सकता है
आप आज भी हो, जो भी धारणायें हो, सभी को बदला जा सकता है। नए रूप में ढाला जा सकता है।
कई मामलों से इतिहास से पता चला है कि एक व्यक्ति अपनी स्वयं की छवि को बदलकर नया जीवन जी सकता है।
किसी ने भी क्या खूब कहा है-
माना कि यह वक्त सता रहा है
लेकिन यह जीना भी तो सीखा रहा है।
इस लॉकडौउन को जीवन रूपांतरण का मौका बनाते है, चलो जीना सिखते है।
प्रो डॉ दिनेश गुप्ता- आनंदश्री
अध्यात्मिक व्याख्याता एवं माइन्डसेट गुरु
मुम्बई