प्रकृति का श्रृंगार
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है
प्रकृति से समन्वय का
अवसर अभी बाकी है
अरुणिम प्रभात-फेरियों का
आलोक अभी बाकी है
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है।
जीव-जगत,जड़ और चेतन
प्रकृति की अनुपम कृतियाँ हैं
वृक्ष-धरा और नदी-घटाएँ
जिसकी जीवन्त आभाएँ हैं
क्या भौतिक विषयों का
आविष्कार अभी बाकी है?
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है।
खोद धरा और वृक्ष काट
प्रकृति को विकृति बना दिया
वसुधा पर तो चलना क्या
चन्द्र पर भी यान चला दिया!
आदित्यरूप सूर्यातप का
प्रकोप अभी बाकी है
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है।
सृष्टि-पूर्व की वही दशाएँ
अवश्य धरा पर आएंगी
शून्य होगी यह वसुधा
जब प्राणिविहीन हो जायेगी
क्या तुझमे इसी प्रलय की
अभिलाषा अभी बाकी है?
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है।
अब रोक ले ऐ इंसान
अपने विनाशक बढ़ते कदम
कर वृक्षारोपण,प्राणी संरक्षण
और लौटा दे सृष्टि की आभाएँ
जो बचाएगी प्राणिजगत
प्रकृति की वात्सल्यता अभी बाकी है
बसंत की नवमालिका का
श्रृंगार अभी बाकी है।
– सुनील कुमार