प्रकृति का यौवन बसंत
ऋतुओं का राजा आया है,
वो बसंत की बहार लाया है।
ऋतुओं की जवानी ले संग,
देश धरा मंडल महकाया है।।
बसंत ने आ धरातल पर आज,
हरियाली कण कण फैलाई है।
ये झूम उठी है भारत हमारी,
वृक्षों की हर डाली मुस्काई है।।
रंग बिरंगे फूलों से है उपवन,
खुशबू मनमोहक बिखराई है।
चप्पा चप्पा है हरित धरा का,
प्रकृति ने मस्त धूम मचाई है।।
कोयल बगिया में गा रही है,
आम की हर डाली बोराई है।
तोता मोर पपिहा नाचते है,
वन्य जीवों में मस्ती छाई है।।
माँ सरस्वती की पूजा करते,
पावन बसंत पंचमी आई है।
शिरोमणी जनमानस प्रसन्न,
अन्धेरा हटा माँ प्रकाश लाई है।।
प्रकृति का यौवन ये बसंत है,
जाड़ों का हुआ अंत बसंत है।
ऋतुओं के बड़े संत बसंत है,
खिला सबका चेहरा बसंत है।।
सरसों के पीले फूल सुनेहरे,
धरा पे हैं हरियाली के डेरे।
ऋतुराज की हरियाली छाई,
है चप्पा चप्पा धरती को घेरे।।
बसंत ‘पृथ्वीसिंह’ मन भाया,
सदगुरु की कृपा नित पाई है।
मैं सबको करूं नवण प्रणाम,
बसंत में ऋतु ने ली अंगड़ाई।।
—
कवि पृथ्वीसिंह बैनीवाल