प्रकृति का मूल्य
क्या कुछ किताबें पढ़ लीं ,तुम्हे ज्ञान हो गया,
मुड़ कर न कभी देखा, अभिमान हो गया।।1।
अपनों को पीछे छोड़ तुम, आगे निकल गए,
ग़ैरों को तुमने थामा, रिश्ते बदल गए।।2।।
दिखता है स्वप्न तुमको, हर रोज़ एक नया,
सच्चा था ख़्वाब पहले, जो अब चला गया।।3।।
क़ीमत न समझी तुमने, अपने क़रीब की,
क्यों फिक्र अब नहीं है, तुमको ग़रीब की।।4।।
थाली में छोड़ा खाना, पानी को किया व्यर्थ,
न भूखे को मिली रोटी, कैसा हुआ अनर्थ।।5।।
माँ प्रकृति ने तुमसे, की अब यही गुहार,
करो न तुम मुझसे, अब ऐसा दुर्व्यवहार।।6।।
काटोगे पेड़ इतने तो तुम क्या पाओगे,
पापों में ही जड़कर, तुम नरक जाओगे।।7।।
है समय अभी भी, तुम ये बात मान लो,
प्रकृति को है बचना, ये बात ठान लो।।8।।
स्वरचित कविता
तरुण सिंह पवार