प्रकृति का मातृ दिवस
आज देखा है वात्सल्य
सृजन करती प्रकृति को
मिट्टी में जन्मे बीज को
उसमें भी तो वात्सल्य भरा है
देखो उन पहाड़ों को
जो सृजित करते हैं पेड़ पौधे
पोषते हैं पत्थर होकर भी
उनमें भी तो मातृत्व भरा है
देखो उन नदियों को
जो पालते जीव जंतुओं को
देखो उन गुनगुनाते पक्षी को
जो भरते हैं हमे सूरो मे
देते हैं एक नई ऊर्जा
देते नया संगीत
देखो उस निशा को
जो देता रात्रि में सुकून
देखो उन जीव जंतुओं को
जो बनाए रखने धरा मे संतुलन
उन में भी तो कितना त्याग भरा है
देखो उसे नीले आकाश को
जिसमें कितना समर्पण भाव भरा है
इस सृजन में वात्सल्य
गर्भ धारण करने वाली मां से
कम ना है
प्रकृति का मातृ दिवस मनाये
इन्हें रौंद कर मातृ दिवस ना मनाये
मौलिक एवं स्वरचित
मधु शाह ( 12-5-24)