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6 Dec 2021 · 2 min read

प्रकृति का प्रतिशोध

अरे मानव!

मैने तुम्हें बहुत समझाया ,

और दिए कई संकेत .।

मगर तुम न समझे ।

जाने कितने ज़मानो से ,

और कितने बहानो से ,

किस किस तरीकों से ,

तुम्हें जतलाया की ,

अब बस भी करो !

बहुत हो गया !

मगर तुमने अपने लालच पर ,

अपनी महत्वाकांक्षा पर ,

ज़रूरतों पर अंकुश नहीं लगाया ।

वैसे तो तुम खुद को बहुत अक्लमंद समझते हो ,

इस पृथ्वी पर ।

अन्य प्राणियों से खुद को सर्वोच्च समझते हो
जैसे तुम ही को प्राप्त है मुझ पर मालिकाना हक ।

तभी तो !
तभी तो तुम्हें सिसकियाँ सुनाई नहीं देती .

आधुनिकता का नशा तुम पर ऐसा चडा है ,

मेरे आंसू तुम्हें दिखाए नहीं देते ।

क्या करें !

मशीनों की आवाज़ों ने तुम्हारा दिमाग जो

ख़राब कर दिया है.।

तुम तो यह भी भूल गए की एक तुम्हारे सिवा

मेरी और भी सन्ताने हैं ।

सिर्फ तुम ही नहीं ।

इन जिव जन्तुयों , इन निरीह प्राणियों का,

मैं एक मात्र सहारा हूँ।

माँ हूँ मैं उनकी भी ,

उनका भी मुझ पर उतना ही हक है

जितना की तुम्हारा ।

तुम ! अरे तुमने तो मेरा अंग भंग कर दिया ।

यह पेड़ मेरे बाजु है ,

जिन्हें तुमने काट डाला ।

मेरा वक्ष स्थल ,यह पहाड़ ,

जिन्हें तुमने dynamite से उड़ा दिया।

जहाँ से बहा करती टी मेरी ममता ।

नदियों के रूप में

मगर अब रक्त बहता है ,

आंसू बहते हैं .

यह केवल नदियों की बाड़ नहीं

मेरे आंसुओं की बाड़ है ।

जो बेसब्र हो कर बह निकली है ।

सच !बहुत पीड़ा हो रही है ।

जो तुम्हें दिखाई नहीं दे रही है।

मगर अब बस !

मेरे सब्र का पैमाना भरने वाला है ,

अब तक जो सिर्फ छलका करता था ,

मगर सावधान !

महाप्रलय आने वाली है।

अब मुझसे कोई उम्मीद मत रखना ।

दया की ,करुणा की प्यार की .
अब तबाही के जिस मुकाम तक
तुमने मुझे पहुँचाया है ।

जिस कगार पर लेकर ए हो तुम मुझे,

अब तुम्हें कोई नहीं बचा सकता ।

इश्वर भी नहीं!

मैं माँ तू हूँ ,और थी अब तक !

मगर अब कुदरत हूँ ।

एक दिन अपने पर किये हर ज़ुल्म
का बदला ज़रूर लुंगी ,

मैं बदला लुंगी !!

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 334 Views
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