प्रकृति का पलटवार
ना होते बन्द यूं मां भवानी के द्वार आराधना के वक़्त पर
गर प्रकृति के इशारे समय रहते हमने समझ लिए होते,
ना होती बन्द यूं मस्जिद बन्द जुम्मे – ए – नमाज के वक़्त पर,
गर खुदा की बनाई प्रकृति पर अत्याचार न हुए होते,
रुकते ना रुकता गुरुद्वारे का वो लंगर का प्रसाद,
गर वाहे गुरू के फरमान हमने समय रहते समझ लिए होते,
हुई तो है खता हमसे जो हमने उसके दिए हर इशारे को
नजरअंदाज किया,
क्या त्रासदी, बाढ़,सुनामी और तूफान तक का भी हमने
मज़ाक किया,
नागवार गुजरा उसको हमारी इस अदा का यूं बेपरवाह होना,
अतः क्रोध रूप में सुनाया उसने हमें खुद से दूर रहने का
फरमान,
रोता देख अपने बच्चों को आंसू उसके भी छलक पड़े,
इसलिए चैत्र मास में बिन मौसम बादल यूं ही बरस पड़े,
मांगते हैं माफी माफ कर दो और ना रूठो ए खुदा तुम अब
हमसे,
आया अब समझ हमें कृपा करो और बचा लो अब हमें इन
सबसे।