प्रकृति का नव-वर्ष 【घनाक्षरी】
प्रकृति का नव-वर्ष 【घनाक्षरी】
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पीली-पीली पत्तियाँ समस्त झड़ चुकीं अब
पेड़ों की सुकोमल नवीन छवि आ गई
जाड़ों का न कहर हवा में रहा लेश-मात्र
मौसम में जैसे एक मस्ती-सी छा गई
थिरक रहा है मन नर्तन कर रहा
बोली हास-परिहास वाली अब भा गई
आई कुदरत बोली सबसे मनाओ मौज
नया साल सबको मुबारक सुना गई
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रचयिता : रवि प्रकाश, बाजार सर्राफा
रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451