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17 Jun 2017 · 1 min read

“प्रकृति और मानव”

“प्रकृति और मानव”
(१)वन उपवन खंडित लखे, तरुवर सरिता खोय।
निर्झर नयना नीर भर, बेसुध धरती रोय।।

(२)फल लकड़ी छाया सहित,पुष्प दिए उपहार।
शाख पत्र आतप हरैं,वृक्ष करैं सिंगार।।

(३)शीतलता हिय धार कै,सरिता प्यास बुझाय।
चरण पखारै शैल कै, हरित आभ मन भाय।।

(४)शैल उठे नभ चूमने, उच्च मनोरथ धार।
देख धरा नीरव हिया,मेघ लुटाएँ प्यार।।

(५)भौतिकता चश्मा चढ़ा, मानव अति बौराय।
वन उपवन को काटि कै,दानवता अधिकाय।।

(६)मानव नरभक्षी हुआ, हाथ धरै हथियार।
मानवता को भूल कै, खूब करै संहार।।

डॉ. रजनी अग्रवाल “वाग्देवी रत्ना”
संपादिका-साहित्य धरोहर
महमूरगंज, वाराणसी (मो.-9839664017)

Language: Hindi
1 Like · 660 Views
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