प्यासा मन
प्यासा है मनुष्य मौर प्यासा है प्रत्येक जड़-चेतन ,
बारिश की दो बूंदों को तरसे हर प्राणी का मन।
अब तो बरस भी जा ,कुछ तो रहम कर ,ऐ बरखा
तेरी एक झलक को तरसे सृष्टि का कण-कण ।
प्यासा है मनुष्य मौर प्यासा है प्रत्येक जड़-चेतन ,
बारिश की दो बूंदों को तरसे हर प्राणी का मन।
अब तो बरस भी जा ,कुछ तो रहम कर ,ऐ बरखा
तेरी एक झलक को तरसे सृष्टि का कण-कण ।