प्यासा के कुंडलियां (pyasa ke kundalian) pyasa
एक कुंडलियां छंद-
मुश्किल-दुर्लभ हैं बहुत, राजनीति में मित्र।
सत्य मुँह के भी झूठे,होते यहां विचित्र।।
होते यहां विचित्र, स्वार्थ से बड़ा नही कुछ।।
हुआ जुआ सा खेल, युधिष्ठिर हारे सचमुच।।
कह ‘प्यासा’ कविराय, पवित्रता हुआ असुलभ।
गन्दा-गन्दा दिखा, सफाई मुश्किल -दुर्लभ।।
– ‘प्यासा’
( २)
सज्जन दुर्जन से भरा,पूरा यह संसार l
प्रेम सृजन में कुछ लगे , कुछ के कटु व्यवहार।।
कुछ के कटु व्यवहार,सच्च को झूठ बताना।
खुद का भ्रष्टाचार, सर दूसरे मढ़ जाना।।
कह ‘प्यासा’कविराय, अनर्गल करके गर्जन।
अपनी कमी छुपाय,कहे सज्जन को दुर्जन।।
-‘प्यासा’