प्यासा के कुंडलियां (दारू -मदिरा) विजय कुमार पाण्डेय ‘प्यासा’
दारू-मदिरा से सुनो,कभी न बनते काम।
धीरे -धीरे हे सखे,बिगड़े जाते नाम ।।
बिगड़े जाते नाम, स्वास्थ्य गिरते ही जाते।
घर समाज सब जगह, मुफ्त में हँसी उड़ाते ।।
‘प्यासा’लत यह त्याग,सुधर बन फिर से हीरा।
आँखें अपनी खोल, छोड़ दे दारू -मदिरा।।
-‘प्यासा’