प्याला।
खुद में आनंद का सोता है अनुपम यह जीवन हाला है।
ज्ञानी जन कहते सदियों से अनजान मगर यह प्याला है।।
जो प्यास बढ़ती जाती है यह हाला किसने ढाली है।
हैरत से पूछ रहा सबसे जबकि प्याला खुद साकी है।।
यह पूरी वसुधा प्याला है आकर्षण चिर नव हाला है।
संयोगों से बनती मिलती यह जीवन रूपी हाला है।।
हरियाली हाला ढूंढ रहा ऊसर धरती में मतवाला।
मृगजल में उलझा रहता है मरुथल बन जाता है प्याला।।
चिंतन के प्यालो में ढलतीं दर्शन घर्षण की मदिराएं।
सब सुलझाने की कोशिश में प्याला सब कुछ ही उलझाए।।