प्याला।
जीवन क्षणभंगुर भय जिसको क्षण भर भी न जी पाता है।
वह रहे ज्योति के मध्य किंतु उसको दिखता सब काला है।।
प्याले के मादक हाव भाव इतनी मदिरा छलकाते हैं।
सब बांध टूटते संयम के हम उनमें बहते जाते हैं।।
क्या खोट उसे दिखलाई दे छक कर पी ली जिसने हाला।
सब में ही उसका रूप धरा कहता है वह प्रेमी प्याला।।
सब एक लोक से आते हैं बन जाता है बनने वाला।
जो कर्महीन वे कहते हैं कितना सुंदर है वह प्याला।।
दुख होते सबके भिन्न भिन्न पर एक सी है आंसू हाला।
जो औरों के आंसू पी ले है सही अर्थ में वह प्याला।।
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कुमारकलहंस,23,04,23,बोईसर , पालघर।