प्याला।
मधु की तो बात निराली है।
प्याला यह कैसे कह पाए।
वह सदियों से ही खोज में है।
पर शब्द उचित न वह पाए।
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तन की दुर्बलता देख कहे।
यह जीवन व्यर्थ गंवाया है।
तब तब उस पर हंसती वसुधा।
जब जब प्याला पछताया है।
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पीड़ा से पूरीत पद सबके।
सब चीख रहे हाला हाला।
दो चार बूंद से काम चला।
यह जीवन काट रहा प्याला।
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सब एक लोक से आते हैं।
बन जाता है बनने वाला।
जो कर्म हीन वे कहते हैं।
कितना सुंदर है वह प्याला।
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खुद में आनंद का सोता है।
अनुपम यह जीवन हाला है।
ज्ञानीजन कहते सदियों से।
अनजान किंतु यह प्याला है।
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Kumar Kalhans .