प्यार,
वह कभी प्यार को सिला नहीं,
मैं गया उधर पर वो मिला नहीं,
ना अदावत रही ना गिला कोई,
वह कहाँ गया कुछ इत्तला नहीं,
वह कभी प्यार को सिला नहीं,
मैं गया उधर पर वो मिला नहीं,
बेजान मुहब्बत के इस शहर में,
मैं भटकता धूप औ दोपहर में,
इस कदर गुल्म शाखें बढ़ी हुई,
पर फूल अभी तक खिला नहीं,
वह कभी प्यार को सिला नहीं,
मैं गया उधर पर वो मिला नहीं,
फैला उस तरफ था शोर इतना,
मैं चुप रहा अब खामोश इतना,
हर कोई दे रहा शोर को रोशनी,
कभी दीपक जिनसे जला नहीं,
वह कभी प्यार को सिला नहीं,
मैं गया उधर पर वो मिला नहीं,