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9 Jan 2017 · 1 min read

प्यार

2122 1212 22

प्यार के गीत गा रहा फिर से
चाह की डोर में बँधा फिर से

जाति के भेद को मिटाता मैं
अब मुहब्बत रहा उगा फिर से

जिन्दगी है नियामतें प्रभु की
आज जीकर तू मुस्करा फिर से

शाम जो यह गुजर रही ऐसे
दीप अब चाह के जला फिर से

मीत मेरा अभी नहीं आया
अब बढा फासला कही फिर से

बात मानता नहीं बडो की तू
आज इज्जत रहा घटा फिर से

रोग तुमको लगा इश्क का फिर
कोयले सा रहा जला फिर से

आज धोखे तुझे मिले सबसे
इसलिये पा रहा सजा फिर से

साथ तेरे कभी वफा जो की
क्या मिला आज सिलसिला फिर से

73 Likes · 1 Comment · 331 Views
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