प्यार
2122 1212 22
प्यार के गीत गा रहा फिर से
चाह की डोर में बँधा फिर से
जाति के भेद को मिटाता मैं
अब मुहब्बत रहा उगा फिर से
जिन्दगी है नियामतें प्रभु की
आज जीकर तू मुस्करा फिर से
शाम जो यह गुजर रही ऐसे
दीप अब चाह के जला फिर से
मीत मेरा अभी नहीं आया
अब बढा फासला कही फिर से
बात मानता नहीं बडो की तू
आज इज्जत रहा घटा फिर से
रोग तुमको लगा इश्क का फिर
कोयले सा रहा जला फिर से
आज धोखे तुझे मिले सबसे
इसलिये पा रहा सजा फिर से
साथ तेरे कभी वफा जो की
क्या मिला आज सिलसिला फिर से