प्यार है ये भैया-भाभी का ।
भैया की आँखों मे ऐसा क्या दर्द है,
पढ़ न सके कोई हकीम,
जब भी मुस्कुरा दे भाभीजी,
देख भैया जी यूँ ही हो जाए ठीक।
सुनते नही जो अपने आगे किसी की,
डरते नहीं घर में हो चाहे जो भी,
फिर भी आँखों के एक इशारे भारी पड़े उन पर,
भाभी जी जो देखें नजरोंं से घूर कर ।
सुबह सवेरे सरसरी नज़र से भैया कुछ खोजते,
पड़े जो नज़र भाभी पर हौले से उनसे पूछते,
एक कप चाय तो दे दो माँ भी नहीं पूँछ्ती,
जब से तुम आई हो पैसा ही सिर्फ पूँछ्ती ।
बंधन है प्यारा भैया और भाभी का,
ख़ुशी जो भैया की भाभी से पूछ लो,
खबर जो किसी को रहती नहीं भैया की,
हँसते-मुस्कुराते भाभी जी ने लूट ली ।
रचनाकार-
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बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर।